राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ' दिनकर '
दान जगत का प्रकृत धर्म है, मनुज व्यर्थ डरता है,
एक रोज तो हमें स्वयं सब कुछ देना पड़ता है।
बचते वही समय पर जो सर्वस्व दान करते हैं,
ऋतु का ज्ञान नहीं जिनको वे देकर भी मरते हैं।
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कश्मीरी सेब कहानी का हृदय भाग
कहानीकार का कहानी लिखने का उद्देश्य यह होता है कि लोगों को समाज में होनेवाले हानियों से बचाना । प्रेमचंद जी अपनी भूमिका बखूबी निभाये हैं। भारतीय समाज पर कलम के सिपाही को विशेष गौरव था कहानी के इस निम्नलिखित परिच्छेद में यह स्पस्ट दृगोचर होता है ---
खाने का कायदा नहीं है। फल खाने का समय तो प्रातःकाल है। आज स॒बहमुँह-हाथ धोकर जो नाश्ता करने के लिए एक सेब निकाला, तो सड़ा हुआ
था। एक रुपए के आकार का छिलका गल गया था। समझा, रात को दूकानदारने देखा न होगा। दूसरा निकाला। मगर यह आधा सड़ा हुआ था। अब संदेह
हुआ, दूकानदार ने मुझे धोखा तो नहीं दिया है। तीसरा सेब निकाला। यह सड़ा तो न था; मगर एक तरफ दबकर बिलकुल पिचक गया था। चौथा देखा।वह यों तो बेदाग था; मगर उसमें एक काला सराख था जैसा अक्सर बेरोंमें होता है। काटा तो भीतर वैसे ही धब्बे, जैसे बेर में होते हैं। एक सेब भी खाने लायक नहीं। चार आने पैसों का इतना गम न हुआ जितना समाज के इस चारित्रिक पतन का। दूकानदार ने जानबूझकर मेरे साथ धोखेबाजी का व्यवहार किया। एक सेब सड़ा हुआ होता, तो मैं उसको क्षमा के योग्य सुमझता।सोचता, उसकी निगाह न पड़ी होगी। मगर चारों के चारों खराब निकल जाएँ,
स्वच्छ भारत अभियान निबंध
स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत सरकार द्वारा देश को स्वच्छता के प्रतीक के रुप में पेश करना है। स्वच्छ भारत का सपना महात्मा गाँधी के द्वारा देखा गया था जिसके संदर्भ में गाँधीजी ने कहा कि, ”स्वच्छता स्वतंत्रता से ज्यादा जरुरी है” उनके अपने समय में वो देश की गरीबी और गंदगी से अच्छे से अवगत थे इसी वजह से उन्होंने अपने सपनों को पाने के लिये कई सारे प्रयास किये, लेकिन सफल नहीं हो सके। जैसा कि उन्होंने स्वच्छ भारत का सपना देखा था, उन्होंने कहा कि निर्मलता और स्वच्छता दोनों ही स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन का अनिवार्य भाग है। लेकिन दुर्भाग्य से भारत आजादी के 67 साल बाद भी इन दोनों लक्ष्यों से काफी पीछे है। अगर आँकड़ो की बात करें तो केवल कुछ प्रतिशत लोगों के घरों में शौचालय है, इसीलिये भारत सरकार पूरी गंभीरता से बापू की इस सोच को हकीकत का रुप देने के लिये देश के सभी लोगों को इस मिशन से जोड़ने का प्रयास कर रही है जिससे विश्व भर में ये सफल हो सके।
इस मिशन को अपने प्रारंभ की तिथि से बापू की 150वीं पूण्यतिथि (2 अक्दूबर 2019) तक पूरा करने का लक्ष्य है। इस अभियान को सफल बनाने के लिये सरकार ने सभी लोगों से निवेदन किया कि वो अपने आसपास और दूसरी जगहों पर साल में सिर्फ 100 घंटे सफाई के लिये दें। इसको लागू करने के लिये बहुत सारी नीतियाँ और प्रक्रिया है जिसमें तीन चरण है, योजना चरण, कार्यान्वयन चरण, और निरंतरता चरण।
स्वच्छ भारत अभियान क्या है ?
स्वच्छ भारत अभियान एक राष्ट्रीय स्वच्छता मुहिम है जो भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया है, इसके तहत 4041 सांविधिक नगरों के सड़क, पैदल मार्ग और अन्य कई स्थल आते है। ये एक बड़ा आंदोलन है जिसके तहत भारत को 2019 तक पूर्णंत: स्वच्छ बनाना है। इसमें स्वस्थ और सुखी जीवन के लिये महात्मा गाँधी के स्वच्छ भारत के सपने को आगे बढ़ाया गया है। इस मिशन को 2 अक्टूबर 2014(145वीं जन्म दिवस) को बापू के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर आरंभ किया गया है और 2 अक्टूबर 2019 (बापू के 150वीं जन्म दिवस ) तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है । भारत के शहरी विकास तथा पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के तहत इस अभियान को ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लागू किया गया है।
इस मिशन का पहला स्वच्छता अभियान(25 सितंबर 2014) भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा इसके पहले शुरु किया जा चुका था। इसका उद्देश्य सफाई व्यवस्था की समस्या का समाधान निकालना साथ ही सभी को स्वच्छता की सुविधा के निर्माण द्वारा पूरे भारत में बेहतर मल प्रबंधन करना है।
स्वच्छ भारत अभियान की जरुरत
अपने उद्देश्य की प्राप्ति तक भारत में इस मिशन की कार्यवाही निरंतर चलती रहनी चाहिये। भौतिक, मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक कल्याण के लिये भारत के लोगों में इसका एहसास होना बेहद आवश्यक है। ये सही मायनों में भारत की सामाजिक स्थिति को बढ़ावा देने के लिये है जो हर तरफ स्वच्छता लाने से शुरु किया जा सकता है। यहाँ नीचे कुछ बिंदु उल्लिखित किये जा रहे है जो स्वच्छ भारत अभियान की आवश्यकता को दिखाते है।
- ये बेहद जरुरी है कि भारत के हर घर में शौचालय हो साथ ही खुले में शौच की प्रवृति को भी खत्म करने की आवश्यकता है।
- अस्वास्थ्यकर शौचालय को पानी से बहाने वाले शौचालयों से बदलने की आवश्यकता है।
- हाथ के द्वारा की जाने वाली साफ-सफाई की व्यवस्था का जड़ से खात्मा जरुरी है।
- नगर निगम के कचरे का पुनर्चक्रण और दुबारा इस्तेमाल, सुरक्षित समापन, वैज्ञानिक तरीके से मल प्रबंधन को लागू करना।
- खुद के स्वास्थ्य के प्रति भारत के लोगों की सोच और स्वाभाव में परिवर्तन लाना और स्वास्थ्यकर साफ-सफाई की प्रक्रियों का पालन करना।
- ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में वैश्विक जागरुकता का निर्माण करने के लिये और सामान्य लोगों को स्वास्थ्य से जोड़ने के लिये।
- इसमें काम करने वाले लोगों को स्थानीय स्तर पर कचरे के निष्पादन का नियंत्रण करना, खाका तैयार करने के लिये मदद करना।
- पूरे भारत में साफ-सफाई की सुविधा को विकसित करने के लिये निजी क्षेत्रों की हिस्सेदारी बढ़ाना।
- भारत को स्वच्छ और हरियाली युक्त बनाना।
- ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना।
- स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से समुदायों और पंचायती राज संस्थानों को निरंतर साफ-सफाई के प्रति जागरुक करना।
- वास्तव में बापू के सपनों को सच करने के लिये ये सब करना है।
शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान
शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत मिशन का लक्ष्य हर नगर में ठोस कचरा प्रबंधन सहित लगभग सभी 1.04 करोड़ घरों को 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय, 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय उपलब्ध कराना है। सामुदायिक शौचालय के निर्माण की योजना रिहायशी इलाकों में की गई है जहाँ पर व्यक्तिगत घरेलू शौचालय की उपलब्धता मुश्किल है इसी तरह सार्वजनिक शौचालय की प्राधिकृत स्थानों पर जैसे बस अड्डों, रेलवे स्टेशन, बाजार आदि जगहों पर। शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता कार्यक्रम को पाँच वर्षों के अंदर 2019 तक पूरा करने की योजना है। इसमें ठोस कचरा प्रबंधन की लागत लगभग 7,366 करोड़ रुपये है, 1,828 करोड़ जन सामान्य को जागरुक करने के लिये है, 655 करोड़ रुपये सामुदायिक शौचालयों के लिये, 4,165 करोड़ निजी घरेलू शौचालयों के लिये आदि। वो कार्यक्रम जिन्हें पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है-खुले में शौच की प्रवृति को जड़ से हटाना, अस्वाथ्यकर शौचालय को पानी से बहाने वाले शौचालयों में परिवर्तन, खुले हाथों से साफ-सफाई की प्रवृति को हटाना, लोगों की सोच में परिवर्तन लाना और ठोस कचरा प्रबंधन करना।
ग्रामीण स्वच्छ भारत मिशन
ग्रामीण स्वच्छ भारत मिशन एक ऐसा अभियान है जिसमें ग्रामीण भारत में स्वच्छता कार्यक्रम को अमल में लाना है। ग्रामीण क्षेत्रों को स्वच्छ बनाने के लिये 1999 में भारतीय सरकार द्वारा इससे पहले निर्मल भारत अभियान (जिसको पूर्णं स्वच्छता अभियान भी कहा जाता है) की स्थापना की गई थी लेकिन अब इसका पुर्नगठन स्वच्छ भारत अभियान(ग्रामीण) के रुप में किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों को खुले में शौच करने की मजबूरी से रोकना है, इसके लिये सरकार ने 11 करोड़ 11 लाख शौचालयों के निर्माण के लिये एक लाख चौतिस हजार करोड़ की राशि खर्च करने की योजना बनाई है। ध्यान देने योग्य है कि सरकार ने कचरे को जैविक खाद् और इस्तेमाल करने लायक ऊर्जा में परिवर्तित करने की भी है। इसमें ग्राम पंचायत, जिला परिषद, और पंचायत समिती की अच्छी भागीदारी है। निम्नलिखित स्वच्छ भारत मिशन(ग्रामीण) का लक्ष्य है:
- ग्रामीण क्षेत्रों मे रह रहे लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना।
- 2019 तक स्वच्छ भारत के लक्ष्य को पूरा करने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में साफ-सफाई के लिये लोगों को प्रेरित करना।
- जरुरी साफ-सफाई की सुविधाओं को निरंतर उपलब्ध कराने के लिये पंचायती राज संस्थान, समुदाय आदि को प्रेरित करते रहना चाहिये।
- ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस और द्रव कचरा प्रबंधन पर खासतौर से ध्यान देना तथा उन्नत पर्यावरणीय साफ-सफाई व्यवस्था का विकास करना जो समुदायों द्वारा प्रबंधनीय हो।
- ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर साफ-सफाई और पारिस्थितिक सुरक्षा को प्रोत्साहित करना।
स्वच्छ भारत-स्वच्छ विद्यालय अभियान
ये अभियान केन्द्रिय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा चलाया गया और इसका उद्देश्य भी स्कूलों में स्वच्छता लाना है। इस कार्यक्रम के तहत 25 सितंबर 2014 से 31 अक्टूबर 2014 तक केंद्रिय विद्यालय और नवोदय विद्यालय संगठन जहाँ कई सारे स्वच्छता क्रिया-कलाप आयोजित किये गए जैसे विद्यार्थियों द्वारा स्वच्छता के विभिन्न पहलूओं पर चर्चा, इससे संबंधित महात्मा गाँधी की शिक्षा, स्वच्छता और स्वाथ्य विज्ञान के विषय पर चर्चा, स्वच्छता क्रिया-कलाप(कक्षा में, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, मैदान, बागीचा, किचन शेड दुकान, खानपान की जगह इत्यादि)। स्कूल क्षेत्र में सफाई, महान व्यक्तियों के योगदान पर भाषण, निबंध लेखन प्रतियोगिता, कला, फिल्म, चर्चा, चित्रकारी, तथा स्वाथ्य और स्वच्छता पर नाटक मंचन आदि। इसके अलावा सप्ताह में दो बार साफ-सफाई अभियान चलाया जाना जिसमें शिक्षक, विद्यार्थी, और माता-पिता सभी हिस्सा लेंगे।
निष्कर्ष
इस तरह हम कह सकते है कि 2019 तक भारत को स्वच्छ और हरा-भरा बनाने के लिये स्वच्छ भारत अभियान एक स्वागत योग्य कदम है। जैसा कि हम सभी ने कहावत में सुना है 'स्वच्छता भगवान की ओर अगला कदम है'। हम विश्वास के साथ कह सकते है कि अगर भारत की जनता द्वारा प्रभावी रुप से इसका अनुसरण किया गया तो आने वाले चंद वर्षों में स्वच्छ भारत अभियान से पूरा देश भगवान का निवास स्थल सा बन जाएगा। चूँकि स्वच्छता से ईश्वर का गर्मजोशी से स्वागत शुरु हो चुका है तो हमें भी अपने जीवन में स्वच्छता को जारी रख उनको बनाये रखने की आवश्यकता है, एक स्वस्थ्य देश और स्वस्थ्य समाज को जरुरत है कि उसके नागरिक स्वस्थ्य रहें तथा हर व्यवसाय में स्वच्छ हो।
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5 ई मॉडल, जिसे 1987 में बायोलॉजिकल साइंसेज करिकुलम स्टडी द्वारा विकसित किया गया है, सहयोगात्मक, सक्रिय शिक्षा को बढ़ावा देता है जिसमें छात्र समस्याओं को हल करने के लिए एक साथ काम करते हैं और नए प्रश्नों की जांच करते हैं, अवलोकन करते हैं, विश्लेषण करते हैं और निष्कर्ष निकालते हैं।
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कुरुक्षेत्र ... षष्ठ सर्ग .... भाग - 1 / रामधारी सिंह दिनकर
प्रस्तुत भाग में कवि आज भी आम जीवन में चलने वाले कुरुक्षेत्र से चिंतित है ...
धर्म का दीपक , दया का दीप ,
कब जलेगा ,कब जलेगा , विश्व में भगवान ?
कब सुकोमल ज्योति से अभिसिक्त
हो , सरस होंगे जली - सूखी रसा के प्राण ?
है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार ,
पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार ।
भोग - लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम ,
बह रही असहाय नर की भावना निष्काम ।
भीष्म हों अथवा युधिष्ठिर या कि हों भगवान ,
बुद्ध हों कि अशोक , गांधी हों कि ईसु महान ;
सिर झुका सबको , सभी को श्रेष्ठ निज से मान ,
मात्र वाचिक ही उन्हे देता हुआ सम्मान ,
दग्ध कर पर को , स्वयं भी भोगता दुख - दाह ,
जा रहा मानव चला अब भी पुरानी राह ।
अपहरण , शोषण वही , कुत्सित वही अभियान ,
खोजना चढ़ दूसरों के भस्म पर उत्थान ;
शील से सुलझा न सकना आपसी व्यवहार ,
दौड़ना रह - रह उठा उन्माद की तलवार ।
द्रोह से अब भी वही अनुराग
प्राण में अब भी वही फुँकार भरता नाग ।
पूर्व युग सा आज का जीवन नहीं लाचार ,
आ चुका है दूर द्वापर से बहुत संसार ;
यह समय विज्ञान का , सब भांति पूर्ण , समर्थ ;
खुल गए हैं गूढ संसृति के अमित गुरु अर्थ ।
चीरता तम को , संभाले बुद्धि की पतवार
आ गया है ज्योति की नव भूमि में संसार ।
आज की दुनिया विचित्र , नवीन ;
प्रकृति पर सर्वत्र है , विजयी पुरुष आसीन ।
हैं बंधे नर के करों में वारी , विद्युत ,भाप ,
हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप ।
है नहीं बाकी कहीं व्यवधान ,
लांघ सकता नर सरित , गिरि , सिंधु एक समान ।
प्रकृति पर सर्वत्र है , विजयी पुरुष आसीन ।
हैं बंधे नर के करों में वारी , विद्युत ,भाप ,
हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप ।
है नहीं बाकी कहीं व्यवधान ,
लांघ सकता नर सरित , गिरि , सिंधु एक समान ।
सीस पर आदेश कर अवधार्य ,
प्रकृति के सब तत्त्व करते हैं मनुज के कार्य ।
मानते हैं हुक्म मानव का महा वरुणेश,
और करता शब्दगुण अंबर वहन संदेश ।
नव्य नर की मुष्टि में विकराल
हैं सिमटते जा रहे प्रत्येक क्षण दिक्काल ।
यह प्रगति निस्सीम ! नर का यह अपूर्व विकास !
चरण तल भूगोल ! मुट्ठी में निखिल आकाश !
किन्तु है बढ़ता गया मस्तिष्क ही नि:शेष ,
छूट कर पीछे गया है रह हृदय का देश ;
नर मानता नित्य नूतन बुद्धि का त्योहार ,
प्राण में करते दुखी हो देवता चीत्कार ।
चाहिए उनको न केवल ज्ञान
देवता हैं मांगते कुछ स्नेह, कुछ बलिदान ;
मोम -सी कोई मुलायम चीज ,
ताप पा कर जो उठे मन में पसीज - पसीज ;
प्राण के झुलसे विपिन में फूल कुछ सुकुमार ;
ज्ञान के मरू में सुकोमल भावना की धार ;
चाँदनी की रागनि , कुछ भोर की मुसकान ;
नींद में भूली हुई बहती नदी का गान;
रंग में घुलता हुआ खिलती कली का राज़ ;
पत्तियों पर गूँजती कुछ ओस की आवाज़ ;
आंसुओं में दर्द की गलती हुई तस्वीर ;
फूल की , रस में बसी - भीगी हुई जंजीर ।
धूम , कोलाहल , थकावट धूल के उस पार ,
शीत जल से पूर्ण कोई मंदगामी धार ;
वृक्ष के नीचे जहां मन को मिले विश्राम ,
आदमी काटे जहां कुछ छुट्टियाँ , कुछ शाम ।
कर्म - संकुल लोक - जीवन से समय कुछ छीन ,
हो जहां पर बैठ नर कुछ पल स्वयं में लीन ।
फूल - सा एकांत में उर खोलने के हेतु
शाम को दिन की कमाई तोलने के हेतु ।
ले चुकी सुख - भाग समुचित से अधिक है देह ,
देवता हैं मांगते मन के लिए लघु गेह ।
प्रस्तुत भाग में कवि आज भी आम जीवन में चलने वाले कुरुक्षेत्र से चिंतित है ... मानव आज विज्ञान की राह पर चल रहा है उस पर कवि हृदय क्या कह रहा है इस भाग में पढ़िये
हाय रे मानव ! नियति के दास !
हाय रे मनुपुत्र,अपना आप ही उपहास !
प्रकृति को प्रच्छन्नता को जीत
सिंधु से आकाश तक सबको किए भयभीत ;
सृष्टि को निज बुद्धि से करता हुआ परिमेय
चीरता परमाणु की सत्ता असीम , अजेय ,
बुद्धि के पवमान में उड़ता हुआ असहाय
जा रहा तू किस दशा की ओर को निरुपाय ?
लक्ष्य क्या ? उद्देश्य क्या ? क्या अर्थ ?
यह नहीं यदि ज्ञात , तो विज्ञान का श्रम व्यर्थ ।
सुन रहा आकाश चढ़ ग्रह तारकों का नाद ;
एक छोटी बात ही पड़ती न तुझको याद ।
वासना की यमिनी , जिसके तिमिर से हार ,
हो रहा नर भ्रांत अपना आप ही आहार ;
बुद्धि में नभ की सुरभि ,तन में रुधिर की कीच,
यह वचन से देवता , पर , कर्म से पशु नीच ।
जिसका गगन में जा रहा है यान ,
काँपते जिसके कारों को देख कर परमाणु ।
खोल कर अपना हृदय गिरि , सिंधु , भू , आकाश
हैं सुना जिसको चुके निज गुह्यतम इतिहास ।
खुल गए पर्दे , रहा अब क्या यहाँ अज्ञेय
किन्तु , नर को चाहिए नित विघ्न कुछ दुर्जेय ,
सोचने को और करने को नया संघर्ष ,,
नव्य जय का क्षेत्र पाने को नया उत्कर्ष ।
पर धरा सुपरीक्षिता, विशिष्ट ,स्वाद - विहीन ,
यह पढ़ी पोथी न दे सकती प्रवेग नवीन ।
एक लघु हस्तामलक यह भूमि मण्डल गोल ,
मानवों ने पढ़ लिए सब पृष्ठ जिसके खोल ।
किन्तु , नर - प्रज्ञा सदा गतिशालिनी उद्दाम ,
ले नहीं सकती कहीं रुक एक पल विश्राम ।
यह परीक्षित भूमि , यह पोथी पठित , प्राचीन
सोचने को दे उसे अब बात कौन नवीन ?
यह लघुग्रह भूमिमंडल , व्योम यह संकीर्ण ,
चाहिए नर को नया कुछ और जग विस्तीर्ण ।
घुट रही नर-बुद्धि की है सांस ;
चाहती वह कुछ बड़ा जग , कुछ बड़ा आकाश ।
यह मनुज जिसके लिए लघु हो रहा भूगोल
अपर-ग्रह-जय की तृषा जिसमें उठी है बोल ।
यह मनुज विज्ञान में निष्णात ,
जो करेगा , स्यात , मंगल और विधु से बात ।
यह मनुज ब्रह्मांड का सबसे सुरम्य प्रकाश ,
कुछ छिपा सकते न जिससे भूमि या आकाश ।
यह मनुज जिसकी शिखा उद्दाम ;
कर रहे जिसको चराचर भक्तियुक्त प्रणाम ।
यह मनुज , जो सृष्टि का शृंगार ;
ज्ञान का , विज्ञान का , आलोक का आगार ।
कुरुक्षेत्र ... षष्ठ सर्ग .... भाग --3 / रामधारी सिंह दिनकर
प्रस्तुत भाग में कवि आज भी आम जीवन में चलने वाले कुरुक्षेत्र से चिंतित है ... मानव आज विज्ञान की राह पर चल रहा है उस पर कवि हृदय मंगलवासियों को चेतावनी देता क्या कह रहा है , इस भाग में पढ़िये
पर सको सुन तो सुनो , मंगल- जगत के लोग !
तुम्हें छूने को रहा जो जीव कर उद्योग ,
वह अभी पशु है ; निरा पशु , हिंस्र , रक्त पिपासु ,
बुद्धि उसकी दानवी है स्थूल की जिज्ञासु ।
कड़कता उसमें किसी का जब कभी अभिमान ,
फूंकने लगते सभी हो मत्त मृत्यु - विषाण ।
यह मनुज ज्ञानी , शृंगालों , कूकरों से हीन
हो , किया करता अनेकों क्रूर कर्म मलिन।
देह ही लड़ती नहीं , हैं जूझते मन - प्राण ,
साथ होते ध्वंस में इसके कला - विज्ञान ।
इस मनुज के हाथ से विज्ञान के भी फूल ,
वज्र हो कर छूटते शुभ धर्म अपना भूल ।
यह मनुज , जो ज्ञान का आगार !
यह मनुज , जो सृष्टि का शृंगार !
नाम सुन भूलो नहीं , सोचो विचारो कृत्य ;
यह मनुज , संहार सेवी वासना का भृत्य ।
छद्म इसकी कल्पना , पाषंड इसका ज्ञान ,
यह मनुष्य मनुष्यता का घोरतम अपमान ।
पर , न यह परिचित मनुज का , यह न उसका श्रेय ।
श्रेय उसका बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत ;
श्रेय मानव की असीमित मानवों से प्रीत ;
एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान
तोड़ दे जो , है वही ज्ञानी , वही विद्वान ।
और मानव भी वही, जो जीव बुद्धि -अधीर
तोड़ना अणु ही , न इस व्यवधान का प्राचीर ;
वह नहीं मानव ; मनुज से उच्च , लघु या भिन्न
चित्र-प्राणी है किसी अज्ञात ग्रह का छिन्न ।
स्यात , मंगल या शनिश्चर लोक का अवदान
अजनबी करता सदा अपने ग्रहों का ध्यान ।
रसवती भू के मनुज का श्रेय
यह नहीं विज्ञान , विद्या - बुद्धि यह आग्नेय ;
विश्व - दाहक , मृत्यु - वाहक , सृष्टि का संताप ,
भ्रांत पाठ पर अंध बढ़ते ज्ञान का अभिशाप ।
भ्रमित प्रज्ञा का कौतुक यह इन्द्र जाल विचित्र ,
श्रेय मानव के न आविष्कार ये अपवित्र ।
सावधान , मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलवार ,
तो इसे दे फेंक , तज कर मोह , स्मृति के पार ।
हो चुका है सिद्ध , है तू शिशु अभी नादान ;
फूल - काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान ।
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार ;
काट लेगा अंग , तीखी है बड़ी यह धार ।
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