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Welcome to SINGH RAJBHASHA | वरभव्य भारत भाल पर हिन्दी का तिलक शोभित रहे , हर व्यक्ति के दिल में सदा भारत मेरा अंकित रहे | रक्षक,कृषक सदा आनंदित रहे यहाँ पर ,पंचभूतों के प्रति हमारी श्रद्धा कायम रहे। * क्षमा चाहिए उस भुजंग को जिसके पास गरल हो , उसे क्या जो दंतरहित विषरहित विनीत सरल हो।-'दिनकर' * हा ! शिक्षा मार्ग भी संकीर्ण होकर क्लिस्ट है , कुलपति- सहित उन गुरुकुलों का ध्यान ही अवशिस्ट है। बिकने लगी विद्या यहाँ अब,शक्ति हो तो क्रय करो,यदि शुल्क आदी न दे सके तो व्यर्थ रहकर ही मरो। * केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए,उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए। क्यों "रामचरितमानस"सब कहीं सन्मान्य है ? सत्काव्य-युत उसमें परम आदर्श का प्राधान्य है। -भारत-भारती * ईश्वर उपरांत यदि कोई वस्तु जग में जानी जाती है निस्संदेह प्रेम की पंक्ति गिनने में पहले आती है ।
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